चुड़ैला में भागवत कथा का समापन, देवकीनंदन ठाकुर महाराज को मिलेगी डिलिट की उपाधिक

चुड़ैला में भागवत कथा का समापन, देवकीनंदन ठाकुर महाराज को मिलेगी डिलिट की उपाधिक
झुंझुनूं, 30 नवंबर।
समीपवर्ती गांव चुड़ैला में जाने—माने भागवत मर्मज्ञ पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर महाराज के सानिध्य में भागवत कथा का आयोजन किया गया। बुधवार को समापन के दिन जेजेटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति विनोद टीबड़ेवाला ने पूज्य महाराजश्री को अगले सत्र फरवरी और मार्च में डी लिट की डिग्री देने का ऐलान किया और साथ ही पूज्य महाराजश्री को अभिनन्दन पत्र देकर सम्मानित किया। इससे पहले श्रीमद् भागवत कथा के समापन दिवस की शुरूआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। जिसके बाद पूज्य महाराजश्री ने सभी भक्तगणों को “ओ प्राणी भज ले राधे श्याम” भजन श्रवण कराया। कथा में मुख्य यजमान जेजेटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति डाॅ. विनोद टीबड़ेवाला, भाजपा नेता राजेंद्र भांबू, बालकृष्ण टीबड़ेवाला, रमाकांत टीबड़ेवाला, हनुमानप्रसाद बगड़िया, विशाल टीबड़ेवाला, बाबूलाल ढंढारिया, रामावतार अग्रवाल, प्रेमलता टीबड़ेबाल, उमादेवी टीबड़ेबाल, कावेरी, सीतादेवी, कांतादेवी, राधेश्याम जसरापुरिया, साकेत सौंथलिया, महावीरप्रसाद गुप्ता, ओम गोयनका, संजय शर्मा, नजफगढ़ से योगी मोहननाथ महाराज ने व्यास पीठ से आशीर्वाद प्राप्त किया। इस मौके पर महाराजश्री ने कहा कि व्यक्ति अगर मर्यादाओं में न रहे तो वह अपना ही नहीं सब का नाश कर देता है। हमारी मर्यादा ही हमारा शृंगार है। हमारे संस्कार ही हमारे आभूषण हैं और सत्कर्म ही हमारी मुक्ति है। संस्कारविहीन व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकता है, वह व्यक्ति चाहे कुछ भी प्राप्त कर ले पर कभी खुश नहीं रह सकता। कलियुग के युवक अपने अनुसार ही धर्म की परिभाषा बदलते है। यही उनके विनाश का कारण बनता है। आप भागवत श्रवण कर खुद को कलयुग के प्रकोप से बचा सकते हो। मनुष्य को वही खाना चाहिए जिसे वो भगवान को भी अर्पित कर सके। भगवान का प्रसाद खाने से चित्त शुद्ध होता है। धर्म के प्रचार के तीन माध्यम हैं संत, ब्राह्मण और भगवान का मंदिर। लेकिन आज कल मनुष्य की श्रद्धा आज कल इनमें नहीं रही है। भगवान ने तुम्हें जो जीवन दिया है वो कल्याण के लिए दिया है इसीलिए अपनी तुच्छ इच्छाओं में मत डूबो। संस्कृति रुपी स्टेरिंग हो और संस्कार रुपी ब्रेक हो व्यक्ति के जीवन की गाड़ी में कभी भी मात नहीं खा सकती है। इन दिनों हमारे समाज में दो प्रकार की विचारधारा चल रही है, यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस विचारधारा के साथ जाते है एक वो जो आपका विनाश करना चाहती है और दूसरी वो जो तुम्हें सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य को अपने जीवन को बर्बाद करने में चंद सैकंड लगती है और जीवन को अच्छा बनाने में समय लगता है। बिगड़ना आसान है और बनना मुश्किल है। इसलिए हमें अपनी संस्कृति और संस्कारों का सम्मान करना चाहिए और जीवन को अच्छा और परोपकारी बनाना चाहिए।