पाश्चात्य संस्कृति की भेंट चढ़ा जन्मदिवस का शुभ अवसर
मरूधर विशेष/हनुमान सिंह पुरावत
जन्मदिन का मौका प्रत्येक भारतीय के लिए महत्वपूर्ण और विशेष समय के तौर पर हर वर्ष आता है। यह वो दिन होता है, जब हम अपने परिजनों व मित्रों को एकत्रित कर अपनेपन के माहौल में इस दिन विशेष की खुशियाँ मनाते हैं और जीवन के आगामी साल में कुछ नया और अलग करने का संकल्प मन में धारण करते हैं। लेकिन, विचारणीय पहलु यह है कि हम भारतीयों ने जन्मदिवस जैसे शुभावसर को भी पूरी तरह से पाश्चात्य संस्कृति की भेंट चढ़ा दिया है।
वो ऐसे कि, हिंदू रीति-रिवाज/पद्धति के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्मदिवस होता है, उसे इस अवसर पर अपने परिजनों व ईष्ट मित्रों के साथ सुबह-सवेरे भगवान के मंदिर में जाकर वहां ईश्वर की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर सामूहिक रूप से भक्ति और आरती करके उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करनी चाहिए।
परंतु, पाश्चात्य संस्कृति की आबौ – हवा के वशीभूत हो चुके हम भारतीयों ने इस दिन विशेष के मौके को भी एक प्रकार से फूहड़पन का रूप दे दिया है। क्योंकि यह दौर ऐसा हो चला है, जिसमें जिस व्यक्ति का जन्मदिन होता है उसे एक दिन पूर्व मंदिर जाने की योजना बनाने के इतर, यह प्लानिंग करनी पड़ती है कि कल वह अपने दोस्तों को किस होटल में पार्टी दे, कौनसी ब्राण्ड की शराब पिलाये तथा वेज व नॉनवेज खाने की व्यवस्था कितने – कितने मित्रों हेतु करे। इसके अलावा केक कौनसी डिजाईन का मंगवाये। हालांकि, अधिकतर अवसरों पर केक की व्यवस्था उसके मित्रों द्वारा ही कर दी जाती है, उसे तो बस अपनी भारी जेब के साथ शानदार पार्टी का अरेंजमेंट करना होता है।
इसके बाद शुरू होता है बर्थ-डे सेलिब्रेशन। जिसकी शुरुआत केक पर सजायी व जलायी मोमबत्ती को बुझाकर की जाती है। तत्पश्चात उस केक को खाने की बजाय उसका सत्यानाश करने के लिये एक – दूसरे के चेहरों पर जबरदस्ती चौपड़ दिया जाता है, जो फूहड़पन का जीता – जागता उदाहरण है।
जबकि, भारतीय परम्परा में जन्मदिन के इस शुभ मौके पर न तो केक काटने का कोई जिक्र मिलता है और न ही मोमबत्तियाँ बुझाने का। चूँकि, केक आदि काटना पशुबलि का घोतक है।
ऐसे में आश्चर्य इस बात का होता है कि इस तरह की फूहड़ सभ्यता को पाश्चात्य संस्कृति के वशीभूत होकर भारतीय सभ्यता में सम्मिलित किया जा चुका है, जो भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाजों को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, वो भी स्वयं भारतीयों द्वारा।
लिहाजा भारतीय संस्कृति को बचाए रखने का एक ही तरीका है। और वह है, हिंदी रीति-रिवाजों में जिस प्रकार पाश्चात्य संस्कृति को अपनाया जाने लगा है, उसकी रोकथाम हेतु विभिन्न हिंदू संगठनों द्वारा लोगों में अपनी संस्कृति व सभ्यता के प्रति जन – जागरण अभियान चलाने का।
पाश्चात्य संस्कृति की भेंट चढ़ा जन्मदिवस का शुभ अवसर
